Friday, December 9, 2011

क्षमा मांगने से तो आप मार्दव धर्म के धारी धर्मात्मा बन जाते हें ,और धर्म में शर्म कैसी ?


इससे क्या फायदा क़ि वह क्रोध में जलता रहे और हम भय से गलते रहें.


क्षमा मांगने से तो आप मार्दवधर्म के धारी (क्षमाशील) धर्मात्मा बन जाते हेंऔर धर्म में शर्म कैसी ?


- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 




आखिर हमें माफी मांगने में शर्म क्यों आती है, इसमें शर्म की क्या बात है ?
शर्म तो अपराध या गलती करने में आनी चाहिए, अब जब अपराध बन ही पड़ा है तो माफी मांगने में शर्म कैसीक्षमा मांगना तो मार्दव धर्म है .

क्या अपने अपराध की क्षमा मांगकर हम दोहरा अपराध नहीं करते हें? 
एक तो हमने गलती करके किसी को कष्ट पहुँचाया और फिर अब क्षमा  मांगकर उसे क्रोध की अग्नि में जलने के निमित्त बन रहे हें, क्या किसी के ऐसे कष्ट को दूर करना हमारा धर्म नहीं है?

इससे नुकसान और कष्ट मात्र  उसे ही नहीं हमें भी है -

इससे क्या फायदा क़ि वह क्रोध में जलता रहे और हम भय से गलते रहें.
यदि हम सभी में क्षमा करने या माफी मांगने की प्रवृत्ति नहीं होगी तो हम एक क्रोधी और मानी समाज का निर्माण करेंगे और तब कोई भी शुकून से कैसे रह सकेगा?

यदि हमारा समाज ही क्षमाशील और शिष्ट हो तो यह जगत हम सभी के लिए एक मोहक स्थल बन जायेगा.



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